प्रेम को महोदधि अपार हेरि कै, बिचार,
बापुरो हहरि वार ही तैं फिरि आयौ है।
ताही एकरस ह्वै बिबस अवगाहैं दोऊ,
नेही हरि राधा, जिन्हैं देखे सरसायौ है।
ताकी कोऊ तरल तरंग-संग छूट्यौ कन,
पूरि लोक लोकनि उमगि उफनायौ है।
सोई घनआनंद सुजान लागि हेत होत,
एसें मथि मन पै सरूप ठहरायौ है।।